गढ़वाल के पांच महातम्यशाली शिव सिद्धपीठों किलकिलेश्वर, क्यूंकालेश्वर, बिन्देश्वर, एकेश्वर, ताड़केश्वर में किलकिलेश्वर का प्रमुख स्थान है। श्रीनगर के ठीक सामने अलकनन्दा के तट पर विशाल चट्टान पर स्थित यह मन्दिर युगों से अलकनन्दा के गर्जन-तर्जन को सुनता आ रहा है।
श्रीनगर स्थित कमलेश्वर मन्दिर की तरह ही किलकिलेश्वर मन्दिर मठ की प्राचीनता और मान्यता पौराणिक है। केदारखण्ड पुराण से प्राप्त वर्णन के अनुसार महाभारत काल में पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति के लिये अर्जुन ने इन्द्रकील पर्वत पर तपस्या की थी। अर्जुन के पराक्रम की परीक्षा लेने के लिये भगवान शिव ने किरात (भील) का रूप धारण कर अर्जुन से युद्ध किया था। युद्ध के समय शिव के किरात रूपी गणों के किलकिलाने का स्वर चारों ओर गूंजने लगा। अत: यह स्थान किलकिलेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुआ।
भागीरथी का एक नाम किराती था उसकी प्रमुख सहायक भिलंगना (भील-गंगा) और अलकनन्दा के मध्यवर्ती क्षेत्र में भील राज्य था और यह पूर्णतया संभव है कि उत्तराखण्ड आगमन में अर्जुन का संघर्ष सुअर का शिकार करते हुये भीलों से हुआ होगा। वर्तमान मन्दिर निश्चित रुप से विशाल मन्दिर है। गर्भगृह के तीन और प्रवेशद्वार है, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर। क्योंकि पश्चिम दिशा के प्रवेशद्वार के शीर्ष पर निर्माण शिलालेख लगा है अत: इसे ही मुख्य द्वार कहेंगें। मन्दिर में भैरवलिंग स्थापित हैं। मुख्य मन्दिर के अन्दर आठ इन्च ऊचें शिवलिंग के चारों तरफ़ लकड़ी के आठ खंभों पर काष्ठ का एक बहुत ही सुन्दर मन्दिर बना है। मन्दिर के अन्दर गणेश श्री की ढाई फीट ऊंची चतुर्भुजी मूर्ति अति सुन्दर है। मन्दिर परिसर में ही पूर्व दिशा की ओर मुंह किये पूंछ को अग्रीव उठाये हुये एक उन्नत सिहं लगभग एक हजार वर्ष की प्राचीनता का स्मारक है।
श्रीनगर एस०एस०बी कैम्पस के ठीक सामने गंगापार अलकनन्दा के दांयें किनारे पर २०० फीट ऊंची चट्टान पर रणिहाट नामक स्थान है, जहां पर राजराजेश्वरी देवी का बहुत प्राचीन तथा विशाल मंदिर है। मन्दिर की ऊंचाई लगभग ३० फीट है तथा ...
पालीटेक्निक कालेज श्रीनगर एवं एस० एस० बी० के मध्य में गंगातट के केदारघाट के ऊपर स्थित शंकरमठ श्रीनगर का प्राचीन मन्दिर है। उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ यह मन्दिर बहुत आकर्षक है। हालांकि शंकरमठ नाम से इस मन्दिर मठ के शैव होन...
शीतलामाता को राजस्थान में जगतरानी के नाम से जाना जाता है। स्थानीय नागरिकों में मन्दिर का बहुत महातम्य है। कहा जाता है कि भक्तों की मनोकामना को माता शीतला अवश्य पूरा करती है। कहा जाता है कि शंकराचार्य को यहीं पर हैजे की अत्...
कटकेश्वर महादेव (घसिया महादेव) श्रीनगर से रूद्रप्रयाग जाने वाले मार्ग पर श्रीनगर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर मुख्य मार्ग पर स्थित है "कटकेश्वर महादेव"। सड़के दायें दक्षिण दिशा में स्थित इस मन्दिर का निर्...
कंसमर्दिनी सिद्धपीठ की गणना गढ़वाल के देवी सिद्धपीठों में की जाती है। परंपराओं के अनुसार इसको शंकराचार्य के आदेश से विश्वकर्मा ने बनाया था। पुराणों में प्रसिद्ध है कि कंस द्वारा जब महामाया को शिला पर पटका गया था तो वे उसके ...
श्रीनगर स्थित जैन मन्दिर अपनी कलात्मकता तथा भव्यता के प्रसिद्ध है। यह जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के अनुयायियों का मन्दिर है। कहा जाता है कि १८९४ ईसवी की विरही की बाढ़ से पहले यह मन्दिर पुराने श्रीनगर में स्थित था परन्तु बाढ़ म...