Tuesday March 19, 2024
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ऊधमसिंह नगर

जनपद ऊधमसिंह नगर उत्तराखण्ड में औद्यौगिक नगर के रूप में जाना जाता है। यह जनपद २९१२ वर्ग किलोमीटर के भौगोलिक क्षेत्रफल में बसा हुआ है, जिसकी सीमायें उत्तर में नैनीताल से पूर्व में चम्पावत जनपद, उत्तरप्रदेश तथा नेपाल से तथा दक्षिण तथा पश्चिम में उत्तरप्रदेश से लगी हुई हैं। जनपद का जनसंख्या घनत्व ६४८ व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर, साक्षरता दर ७४.४४% (पुरूष: ८२.४८%, स्त्री: ६५.७३%) तथा १०००:९१९ का लिंगानुपात है। अक्तूबर १९९५ में ऊधमसिहंनगर को जनपद नैनीताल से अलग कर के और रुद्रपुर, काशीपुर और खटीमा तीन अनुमण्डलों को सम्मिलित कर अलग जनपद घोषित कर दिया गया था। इस जनपद का नाम स्वतन्त्रता सैनानी ऊधमसिहं के नाम पर रखा गया है। ये वही ऊधमसिहं थे जिन्होने जलियावाला बाग हत्याकाण्ड में मारे गये सैकड़ों बेकसूर हिन्दुस्तनियों की मौत का प्रतिशोध जनरल डायर को मारकर लिया था। प्रशासनिक दृष्टि से यह जनपद सात तहसीलों (किच्छा, गदरपुर, काशीपुर, जसपुर, खटीमा, सितारगंज, बाज़पुर) तथा सात सामुदायिक विकासखण्डों (बाज़पुर, गदरपुर, जसपुर, काशीपुर, कतैया, रुद्रपुर, सितारगंज) में विभाजित है।

रूद्रपुर इस जनपद का मुख्यालय है। इतिहाकारों के अनुसार रूद्रपुर पहले एक गांव था जिसकी स्थापना भगवान रूद्र के एक आदिवासी भक्त के द्वारा की गई थी। कालांतर में यही रूद्रपुर ग्राम एक शहर के रूप में परिवर्तित हो गया। मुगल सम्राट अकबर के शासन काल के दौरान इस जमीन को 1588 में राजा रुद्र चंद्र को सौंप दिया गया। राजा रुद्र चद्रं ने इस स्थान पर तराई क्षेत्र को अक्सर होने वाले हमलों से बचाने हेतु स्थायी सैन्य शिविर की स्थापना की। जिसके बाद उपेक्षित गांव रूद्रपुर विकास के नये रंगों तथा मानवीय गतिविधियों से परिपूर्ण हो गया। कहा जाता है कि रुद्रपुर को राजा रूद्र चद्रं के नाम पर नामित किया गया जिसे वर्ष १८६४-६५ में इसे नैनीताल जनपद के गठन के समय नैनीताल जनपद में लिया गया तथा पूरे तराई तथा भाबर क्षेत्र को "तराई एवं भाबर सरकार अधिनियम" के तहत ब्रिटिश ताज के द्वारा नियंत्रित किया गया। वर्ष १९४७ में देश स्वतन्त्र होने के पश्चात विभाजन की समस्या के साथ जिस नई समस्या ने भारत में जन्म किया था वह थी उत्तर पश्चिम और पूर्वी क्षेत्रों से आये अप्रवासी शरणार्थियों की । वर्ष १९४८ में १६४.२ वर्ग किलोमीटर के भूमि क्षेत्र में "उत्तरप्रदेश निवेश योजना" के तहत जब शरणार्थियों के पुनर्वास की योजना के साथ ही इस क्षेत्र के वास्तविक विकास का इतिहास शुरू हुआ । भारतवर्ष कई धर्मों और व्यवसायों के लोगों के कारण "विविधता में एकता" का एक अद्वितीय उदाहरण है ठीक उसी तरह तराई का मुख्य अंग रूद्रपुर में आज भी कश्मीर, पंजाब, केरल, पूर्वी उत्तर प्रदेश, गढ़वाल, कुमाऊं, बंगाल, हरियाणा, राजस्थान, नेपाल, और नायडू के लोग इस जनपद में समूहों में रहते हुये आज भी देखे जा सकते हैं। इसीलिये इसको "मिनी हिन्दुस्तान" के नाम से भी जाना जाता है। जनपद में रुद्रपुर के महत्व का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह ऊधमसिंह नगर जनपद के एक तिहाई हिस्से में फ़ैला हुआ है।
इस जनपद में पर्यटन, निर्माण, इंजीनियरिंग वर्क्स, ऊन आधारित उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण, रेशम उत्पादन, मधुमक्खी पालन, कांच से जुड़े उद्योग स्थापित हैं। आलू, प्याज, मटर, मसूर, आम, पपीता, गेहूं, चावल, गन्ना, मक्का इस जनपद की मुख्य फसलों में आती हैं। यह जनपद अपनी धान की फसलों की उत्पादकता के लिये प्रसिद्ध है।

जनपद की मुख्य नदियों में शारदा, कोसी, गोला, फिक्का, स्वाल्दे, बोर, नन्धोर, भाक और कैलाश हैं। ग्रीष्म ऋतु में जनपद का औसतन तापमान ३२.५१ डिग्रीसे० तथा सर्दियों में औसतन तापमान १४.४८ डिग्रीसे० रहता है। जून से लेकर सितंबर तक का समय जनपद में वर्षाकालीन समय होता है जिसमें औसतन ७२५.२ मिमी वर्षा होती है । जुलाई और अगस्त दो माह में सबसे ज्यादा वर्षा होती है। आवागमन के मुख्य साधनों में कुमाऊं मोटर्स ओनर्स यूनियन लिमिटेड (केएमओयू लि.), व उत्तराखण्ड परिवहन निगम व उत्तरप्रदेश परिवहन निगम की बसें हैं जो रुद्रपुर जनपद को देहरादून, उत्तरप्रदेश, दिल्ली व उत्तराखण्ड के अन्य जनपदों से जोड़ती हैं। साथ ही जनपद के सभी मुख्य नगरों में टैक्सी यूनियन भी हैं जो कि वर्ष भर निरंतर पर्यटकों का आवागमन आसान करती हैं। रुद्रपुर अपने रेलवे स्टेशन के द्वारा नियमित रेलसेवा से दिल्ली लखनऊ और कलकत्ता जैसे सभी मुख्य स्थानों से जुड़ा हुआ है। जनपद का निकटतम एअरपोर्ट पंतनगर में स्थित है जो कि रुद्रपुर से लगभग ११ किमी० की दूरी पर स्थित है ।

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