Tuesday March 19, 2024
234x60 ads

टिहरी गढ़वाल

जनपद टिहरी उत्तराखण्ड के पवित्र पर्वतीय जनपदों में से एक है। कहा जाता है कि ब्रह्माण्ड की रचना से पूर्व भगवान ब्रह्मा ने इस धरती पर साधना की थी। लगभग ४०८५ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैले टिहरी जनपद के उत्तर में उत्तरकाशी, दक्षिण में पौड़ी जनपद, पूर्व में रूद्रप्रयाग जनपद व पश्चिम में देहरादून जनपद स्थित है। टिहरी जनपद का जनसंख्या घनत्व १६९ व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर, साक्षरता दर ७५.१०% (पुरूष : ८९.९१%, स्त्री: ६१.७७%) तथा लिंगानुपात १०००:१०७८ है। अलकनन्दा, भागीरथी, भिलंगना तथा बालगंगा इस जनपद की मुख्य नदियों में से एक हैं। जनपद तीन क्षेत्रों में बंटा हुआ है कीर्तिनगर, टिहरी, प्रतापनगर । प्रशासनिक दृष्टि से यह जनपद सात तहसीलों (देवप्रयाग, घनसाली, नरेन्द्रनगर, प्रतापनगर, टिहरी, जड़धार गांव, धनोल्टी) तथा नौ सामुदायिक विकासखण्डों में बंटा हुआ है (बुडोगी, चम्बा, देवप्रयाग, जाखणीधार, जौनपुर, कीर्तिनगर, नरेन्द्रनगर, प्रतापनगर तथा टिहरी गढ़वाल)। वर्षाकाल में जनपद में औसत वर्षा ८४२.२ मि०मि० होती है, ग्रीष्मकाल में जनपद का औसत तापमान २९.५ डि०से० तथा शीतकाल में औसत तापमान १२.२४ डि०से० रहता है। सर्दियों में तापमान हिमांक से नीचे चला जाता है, जबकि जनपद की उच्च चोटियां बर्फ से ढकी रहती हैं। जून से लेकर सितंबर तक का समय जनपद में वर्षाकालीन समय होता है । जुलाई और अगस्त दो माह में सबसे ज्यादा वर्षा होती है। जनपद की मुख्य फसलें गेहूं, चावल, चाय, मक्का, जौ, तंबाकू, सेब, नाशपाती, नींबू, बेर, आम, पपीता, आलू, प्याज, मटर इत्यादि हैं।

टिहरी गढ़वाल दो शब्दों से मिलकर बना है "टिहरी" और "गढ़वाल"। टिहरी शब्द "त्रिहरि" शब्द का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है कि एक ऐसा स्थान जो तीन तरह के पाप जो कि मन, वचन तथा कर्म से जन्म लेते हैं सभी को धो देता है, वहीं गढ़वाल शब्द गढ़ से मिलकर बना है जिसक अर्थ होता है "किला"। सन ८८८ से पूर्व सारा गढ़वाल क्षेत्र छोटे-छोटे "गढ़ों" में विभक्त था जिनमें अलग अलग राजा राज्य करते थे जिन्हें "राणा", "राय" या "ठाकुर" के नाम से जाता था। स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में यह स्थान  गणेशप्रयाग व धनुषतीर्थ के नाम से वर्णित है।

जनपद टिहरी गढ़वाल का मुख्यालय नई टिहरी समुद्रतल से १६०० मीटर की ऊंचाई पर ऋषिकेश से लगभग ७६ किलोमीटर दूर स्थित है। जो कि यहां से १६ किमी दूर स्थित टिहरी बांध परियोजना के फलस्वरुप विस्थापित लोगों के पुनर्वास हेतु बसाया गया है। पुरानी टिहरी नाम का स्थान जो कि पहले जनपद मुख्यालय हुआ करता था अपने गौरवशाली इतिहास के साक्ष्यों के साथ अब जलमग्न हो चुका है। बांध मे अब विशाल झील का निर्माण हो जाने के कारण अब यह नई टिहरी नगर पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन रहा है। ऐसा कहा जाता है कि मालवा के राजकुमार कनकपाल एक बार बद्रीनाथ जी (जो आजकल चमोली जिले में है) के दर्शन को गये जहाँ वो पराक्रमी राजा भानु प्रताप से मिले। राजा भानु प्रताप उनसे काफी प्रभावित हुए और अपनी इकलौती बेटी का विवाह कनकपाल से करवा दिया साथ ही अपना राज्य भी उन्हें दे दिया। धीरे-धीरे कनकपाल और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ एक-एक कर सारे गढ़ जीत कर अपना राज्य बढ़ाती गयीं। इस तरह से सन्‌ १८०३ तक सारा (९१८ सालों में) गढ़वाल क्षेत्र इनके कब्जे में आ गया। इन्हीं सालों में गोरखाओं के नाकाम हमले (लंगूर गढ़ी को कब्जें में करने की कोशिश) भी होते रहे, लेकिन सन्‌ १८०३  में आखिर देहरादून की एक लड़ाई में गोरखाओं की विजय हुई जिसमें राजा प्रद्युम्नशाह मारे गये। लेकिन उनके शाहजादे (सुदर्शन शाह) जो उस समय छोटे थे वफादारों के हाथों बचा लिये गये। धीरे-धीरे गोरखाओं का प्रभुत्व बढ़ता गया और इन्होने करीब १२ साल राज्य किया। इनका साम्राज्य कांगड़ा तक फैला हुआ था, फिर गोरखाओं को महाराजा रणजीत सिंह ने कांगड़ा से निकाल बाहर किया। और इधर सुदर्शन शाह ने ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद से गोरखाओं से अपना राज्य पुनः छीन लिया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने फिर कुमाऊँ, देहरादून और पूर्व (ईस्ट) गढ़वाल को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला दिया और पश्चिम गढ़वाल राजा सुदर्शन शाह को दे दिया जिसे तब टेहरी रियासत के नाम से जाना गया। राजा सुदर्शन शाह ने अपनी राजधानी टिहरी या टेहरी शहर को बनाया, बाद में उनके उत्तराधिकारी प्रताप शाह, कीर्ति शाह और नरेन्द्र शाह ने इस राज्य की राजधानी क्रमशः प्रताप नगर, कीर्ति नगर और नरेन्द्र नगर स्थापित की। इन तीनों ने १८१५ से सन्‌ १९४९ तक राज्य किया। तब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान यहाँ के लोगों ने भी काफी बढ चढ कर हिस्सा लिया। आजादी के बाद, लोगों के मन में भी राजाओं के शासन से मुक्त होने की इच्छा बलवती होने लगी। महाराजा के लिये भी अब राज करना मुश्किल होने लगा था। और फिर अंत में ६० वें राजा मानवेन्द्र शाह ने भारत के साथ एक हो जाना कबूल कर लिया। इस तरह सन्‌ १९४९ में टिहरी राज्य को उत्तर प्रदेश में मिलाकर इसी नाम का एक जिला बना दिया गया। बाद में २४ फरवरी १९६० में उत्तर प्रदेश सरकार ने इसकी एक तहसील को अलग कर उत्तरकाशी नाम का एक ओर जिला बना दिया।

आवागमन के मुख्य साधनों में टिहरी गढ़वाल मोटर्स ओनर्स यूनियन लिमिटेड (टीजीएमओयू लि.), व उत्तराखण्ड परिवहन निगम की बसें हैं जो टिहरी जनपद को देहरादून, उत्तरप्रदेश, दिल्ली व उत्तराखण्ड के अन्य जनपदों से जोड़ती हैं। साथ ही जनपद के सभी मुख्य नगरों में टैक्सी यूनियन भी हैं जो कि वर्ष भर निरंतर पर्यटकों का आवागमन आसान करती हैं। जनपद का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन लगभग ७६ किमी० कि दूरी पर ऋषिकेश में स्थित है । जनपद का निकटतम एअरपोर्ट जौलीग्रांट देहरादून स्थित है जो कि नई टिहरी से लगभग ९० किमी० की दूरी पर स्थित है ।

Destinations