Tuesday March 19, 2024
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कंसमर्दिनी सिद्धपीठ, कोट्‌या श्रीनगर

कंसमर्दिनी सिद्धपीठ, कोट्‌या श्रीनगर
कंसमर्दिनी सिद्धपीठ, कोट्‌या श्रीनगरकंसमर्दिनी सिद्धपीठ, कोट्‌या श्रीनगरकंसमर्दिनी सिद्धपीठ, कोट्‌या श्रीनगर
कंसमर्दिनी सिद्धपीठ

कंसमर्दिनी सिद्धपीठ की गणना गढ़वाल के देवी सिद्धपीठों में की जाती है। परंपराओं के अनुसार इसको शंकराचार्य के आदेश से विश्वकर्मा ने बनाया था। पुराणों में प्रसिद्ध है कि कंस द्वारा जब महामाया को शिला पर पटका गया था तो वे उसके हाथ से छूट गई तथा इस स्थान पर आकर प्रतिष्ठित हो गई।
कंसमर्दिनी सिद्धपीठ शाक्तों का प्राचीन प्रसिद्ध पीठ रहा है। इसका संचालन घिल्डियाल वंशी ब्राह्मणों के द्वारा किया जाता है।
इस मन्दिर में १८६६ विक्रमी के कुछ शिलालेख यहां पर मिलते हैं। जिसमें ऐसा प्रतीत होता है कि गोरखाओं ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था। श्रीनगर के रामलीला मैदान से जो रास्ता अलकनन्दा नदी की तरफ जाता है उसी रास्ते के दाहिनी तरफ और नगर के उत्तर की तरफ यह सिद्धपीठ स्थित है।
इतिहासकार डा० शिवप्रसाद नैथानी जी के अनुसार प्राचीन श्रीक्षेत्र में शाक्तमत के अन्तर्गत तीन प्रसिद्ध सिद्धपीठ थे। राजराजेश्वरी रणिहाट, दक्षिण कालिका श्रीनगर और कोट्‌या की कंसमर्दिनी। इनमे राजराजेश्वरी गंगापार रणिहाट में थी जो आज भी है, परन्तु आराधकों ने उपेक्षा कर दी है। दक्षिण कालिका जो श्रीयंत्र के निकट थी श्रीनगर के गढ़नरेशों के राज्यकाल में ही बह गई थी और वहां मात्र श्मशानघाट ही निशानी के रूप में बचा रह गया है। परन्तु कंसमर्दिनी पीठ आज भी है और घिल्डियाल तथा धनाई जाति की इष्टदेवी के रूप में तो ख्याति प्राप्त है ही, समृद्धि को प्राप्त हो रहे श्रीनगर के आस्थावान जनों के बीच परम सिद्धिदात्री भी मानी जाती है।



फोटो गैलरी : कंसमर्दिनी सिद्धपीठ, कोट्‌या श्रीनगर

Comments

1

divya ghildyal | April 03, 2020
i have visited the place actually when kansa tried to kill the girl child of vasudeva it is this place where she fell , and predicted that killer of kansa lord shri krishna is already born . Here goddess is invisible the priest told me . nice place do visit very calm very quiet away from noise and pollution.

2

ram naithani | September 18, 2013
you are doing a very good and noble job in bringing the unknown temples and religious places of Uttrakhand to the knowledge of general public.Specially those ukites who were born and brought up outside UK,WILL find it very useful in connecting them back with their DEVBHOOMI-RAM

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