कमलेश्वर महादेव के उत्तर में अलकनन्दा तट पर स्थित केशोराय मठ उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ अत्यन्त सुन्दर मन्दिर है। बड़ी-बड़ी प्रस्तर शिलाओं से बनाये गये इस मन्दिर की कलात्मकता देखते ही बनती है। कहा जाता है कि संवत् १६८२ में इस मन्दिर का निर्माण महीपतिशाह के शासनकाल में केशोराय ने कराया था, इन्ही के नाम पर यह "केशोराय मठ" कहलाया। अलकनन्दा तट पर खड़े इस मन्दिर का अनूठा ही इतिहास रहा है। १८९४ ईसवी में बिरही की बाढ़ में श्रीनगर शहर के डूब जाने के साथ-साथ यह मन्दिर भी पूरी तरह से रेत में दब गया था। बाढ़ में मन्दिर का एक चौथाई आधारतल खिसकने तथा मन्दिर का ऊपरी हिस्सा ध्वस्त हो जाने के बाद भी यह मन्दिर अड़िग खड़ा है जो कि वर्षों से काल के थपड़ों को खाकर मूक खडे रहना इसके स्थापत्य की सुदृढ़ता का आभास दिलाता है। यह एक ऐसा मन्दिर है जिसका निर्माण मन्दिर के उद्देश्य से किया तो गया था लेकिन निर्माण के पश्चात इसमें कभी ना तो देवायतन की शुद्धि हो पाई और ना ही देव प्रतिमा की स्थापना। कहा जाता है कि जब तक देवायतन की शुद्धि नही होती, देवप्रतिमा स्थापना का संस्कार नहीं होता, किसी तीर्थ दिव्य देश से लेकर अर्चा विग्रह स्थापना नहीं हो जाती वह स्थान तथा वास्तु अभिशप्त हो जाता है, प्रेतग्रस्त हो जाता है। लगभग वर्ष १९७० में एस० एस० बी० ने इस मन्दिर के उद्धार का बीड़ा उठाया। मन्दिर के गर्भगृह से सारी रेत निकालकर गंगाजल से धोया गया। रिक्त पड़े देव-सिंहासन पर राजस्थान से देवप्रतिमा मंगवाकर मन्दिर में देवमूर्ति की स्थापना कराई गई। मदिंर परिसर के छोटे-छोटे मन्दिरों में भी मूर्तियां स्थापित की गई मन्दिर में पुजारी रखे गये। परन्तु धीरे धीरे समय के साथ-साथ मन्दिर पुन: वीरान हो चला तथा दुर्दशा को प्राप्त हो गया। धीरे धीरे यह मन्दिर साधु/संन्यासियों का डेरा बनता चला गया जो आया वही इसको नया नाम देकर चला गया। वर्ष २००३ से पंचवम पंचनाम जुना अखाड़ा हरिद्वार के बाबा त्रिकालगिरी इस मन्दिर/मठ में अपने शिष्यों के साथ निवास करते आ रहे हैं, जिन्होने इस मठ का नाम दत्तात्रेय मठ बताया लेकिन इस तथ्य को सिद्द करने में कोई साक्ष्य वे प्रस्तुत नहीं कर पाये। प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष २०१३ में केदारनाथ उत्तराखण्ड आपदा के दौरान आई बाढ़ में इस मन्दिर का अधिकाशं हिस्सा बह गया। अब संभवतया मन्दिर के अवशेष ही बचे हैं।
कंसमर्दिनी सिद्धपीठ की गणना गढ़वाल के देवी सिद्धपीठों में की जाती है। परंपराओं के अनुसार इसको शंकराचार्य के आदेश से विश्वकर्मा ने बनाया था। पुराणों में प्रसिद्ध है कि कंस द्वारा जब महामाया को शिला पर पटका गया था तो वे उसके ...
पालीटेक्निक कालेज श्रीनगर एवं एस० एस० बी० के मध्य में गंगातट के केदारघाट के ऊपर स्थित शंकरमठ श्रीनगर का प्राचीन मन्दिर है। उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ यह मन्दिर बहुत आकर्षक है। हालांकि शंकरमठ नाम से इस मन्दिर मठ के शैव होन...
देवभूमि गढ़वाल के अतिप्राचीनतम शिवालयों में से एक महत्वपूर्ण शिवालय है कमलेश्वर महादेव मन्दिर। इस मन्दिर पार्श्व भाग में गणेश एवं शंकराचार्य की मूर्तियां हैं। मुख्यमन्दिर के एक और कमरे में बने सरस्वती गंगा तथा अन्नपूर्णा की...
श्रीनगर स्थित जैन मन्दिर अपनी कलात्मकता तथा भव्यता के प्रसिद्ध है। यह जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के अनुयायियों का मन्दिर है। कहा जाता है कि १८९४ ईसवी की विरही की बाढ़ से पहले यह मन्दिर पुराने श्रीनगर में स्थित था परन्तु बाढ़ म...
नवनाथ परम्परा में गोरखनाथ जी नौ वें नाथ जो कि गुरू मछिन्दरनाथ के शिष्य थे। गुरु गोरखनाथ ने हठयोग का प्रचार किया था और अनेक ग्रन्थों की रचना भी की थी। अवधारणा है कि गुरू गोरखनाथ की केवल दो ही स्थानों पर गुफायें बनाई गई है...
गढ़वाल के पांच महातम्यशाली शिव सिद्धपीठों किलकिलेश्वर, क्यूंकालेश्वर, बिन्देश्वर, एकेश्वर, ताड़केश्वर में किलकिलेश्वर का प्रमुख स्थान है। श्रीनगर के ठीक सामने अलकनन्दा के तट पर विशाल चट्टान पर स्थित यह मन्दिर युगों से अलकनन्...