पौड़ी शहर से ९ किलोमीटर की दूरी पर पौड़ी-देवप्रयाग राजमार्ग पर आंछरीखाल नामक स्थान पर स्थित है मां वैष्णो देवी का मन्दिर। धार्मिक एवं दर्शनीय पर्यटन के लिये यह स्थान काफी रमणीक है। यहां से हिमालय की विस्तृत दृश्यावली के साथ ही श्रीनगर में बहती गंगा का मनोहारी दर्शन होता है। पौराणिक दृष्टिकोण से मन्दिर का निर्माण भक्तों की आस्था का प्रतीक है। कहा जाता है कि कफलना गांव के निवासी राजेन्द्र सिंह को सपने में मां वैष्णों देवी ने दर्शन देकर किसी ऊंचे स्थान पर अपने लिये स्थापना हेतु मन्दिर निर्माण की बात कही थी। सपने में माता वैष्णों देवी द्वारा दिये हुये आदेश का पालन कर उस व्यक्ति ने आंछरीखाल नामक स्थान पर मां वैष्णों देवी मन्दिर का निर्माण कराया। आज इस मन्दिर की पौड़ी ही नहीं अपितु सुदूरवर्ती क्षेत्रों में काफी प्रसिद्धि है। मां के आशीर्वाद से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है। मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु मन्दिर के विकास में अपनी अहम् भूमिका निभाते हैं। माता वैष्णों देवी (जम्मू कश्मीर) मन्दिर के प्रतिरूप इस मन्दिर में श्रद्धालुओं द्वारा एक गुफा का भी निर्माण कराया गया है। जो कि मन्दिर की महत्ता और आकर्षण को बढ़ाते हैं। नवरात्रों के दिनों में इस मन्दिर में काफी चहल पहल रहती है। धार्मिक स्थल के साथ साथ पर्यटन के दृष्टिकोण से भी यह मन्दिर काफी महत्वपूर्ण है। पौड़ी देवप्रयाग मार्ग पर स्थित होने के कारण इस मन्दिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। पौड़ी से देवप्रयाग जाने वाली सवारी बसें तथा टैक्सी इसी स्थान से होकर गुजरती हैं। सड़क पर ही आवश्यक्ता की छोटी-मोटी चीजों की एक-दो दुकानें हैं जहां चाय पानी और अल्पाहार मिला जाते हैं। परन्तु रात्रि निवास हेतु समीपस्थ उपयुक्त स्थान केवल पौड़ी शहर ही है। साभार : वीरेन्द्र खंकरियाल [पौड़ी और आस पास]
बस स्टेशन पौड़ी से कुछ ही दूरी पर स्थित "लक्ष्मीनारायण मन्दिर" की स्थापना १४-फरवरी-१९१२ संक्रान्ति पर्व पर की गई थी। इस मन्दिर में स्थापित लक्ष्मी और नाराय़ण की मूर्ति सन् १९१२ पूर्व विरह गंगा की बाढ़ आने के उ...
पौड़ी बस स्टेशन से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर कण्डोलिया-बुवाखाल मार्ग पर स्थित है घने जंगल के मध्य स्थित है "नागदेव मंदिर"। प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण घने बांज, बुरांश तथा गगनचुम्बी देवदार, चीड़ के वृक्षों के...
कण्डोलिया देवता वस्तुत: चम्पावत क्षेत्र के डुंगरियाल नेगी जाति के लोगों के इष्ट "गोरिल देवता" है। कहा जाता है कि डुंगरियाल नेगी जाति के पूर्वजों ने गोरिल देवता से यहां निवास करने का अनुरोध किया था जिन्हे वे पौड़ी ...
किसी नाम के आगे ईश्वर लगाकर उसको किसी देवी-देवता की उपाधि से विभूषित कर देना हिन्दू संस्कृति की पुरानी परंपरा है। रामायण काल के मूक साक्षी सितोन्स्यूं क्षेत्र में जहां मनसार का मेला लगता है, से एक फर्लांग की दूरी पर तीन नद...
पौड़ी से ३७ किमी दूर स्थित है नागराजा मन्दिर। उत्तराखण्ड के गढ़वाल मण्डल में जिस देवशक्ति की सर्वाधिक मान्यता है वह है भगवान कृष्ण के अवतार के रूप में बहुमान्य नागराजा की। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान कृष्ण को यह क्ष...
सीता और लक्ष्मणजी सितोन्स्यूं क्षेत्र की जनता के प्रमुख अराध्य देव हैं। देवल गांव में शेषावतार लक्ष्मण जी का एक अति प्राचीन मन्दिर है। इसके चारों और छोटे बड़े ११ प्राचीन मन्दिर और हैं। इन बारह मन्दिरों की संरचना और उनमें स्...