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नन्दा देवी राजजात के पड़ाव - तीसरा पड़ाव - नौटी से कांसुवा

Vinay Kumar DograAugust 21, 2014 | पर्व तथा परम्परा

नन्दा देवी राजजात के पड़ाव - तीसरा पड़ाव - नौटी से कांसुवा
आज २०-अगस्त-२०१४ परम्परानुसार यह राजजात यात्रा का तीसरा पड़ाव है। लेकिन यह यात्रा का पहला वास्तविक पड़ाव भी है। इसी दिन नंदादेवी के ससुराल के लिए विदाई का दुखद एहसास लोगों के मन को कचोटता है। विदाई के इन क्षणों में जिस प्रकार मायके से ससुराल जाने वाली बेटी रो-रो कर विदा होती है वैसा ही मार्मिक एवं कारूणिक दृश्य यहाँ पर उपस्थित हो जाता है। नैंणी, देवल, गड़सारी, छंतोलियाँ बैनोली गाँव से पहले यात्रा में शामिल होती है। ऐरोली में मलेठी तथा केदारूखाल में नौंना की छंतोलियाँ मिलती हैं। मार्ग में देवल, गड़सारी, बनौली, ऐरोली, नौंना, पैंया में यात्रियों का भव्य स्वागत होता है। इसके बाद यात्रा राजवंशी कुंवरों के मूल गाँव कांसुवा पहुँचती है। यहाँ परम्परागत रूप से भव्य स्वागत होता है।
राजा के कानसा (छोटे) भाई का गाँव होने से इस गाँव का नाम ही कांसुवा पड़ा। राजजात के आयोजन से पहले रिंगाल की छंतोली तथा उच्याणा (मनौती) लेकर कांसुवा के लोग अपने राजगुरू नौटियालों के पास जाते हैं तथा राजजात की मनौती के साथ दिन-बार तय किया जाता है। कांसुवा में नन्दादेवी, भराड़ी देवी व कैलापीर देवताओं के मन्दिर हैं। राजराजेश्वरी नन्दादेवी की स्थापना राजकुंवरों के मूल घर में की गयी है। यहाँ पर पूजा की गद्दी पर राजकुंवर के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं बैठ सकता है। भराड़ी के चौक में सर्वप्रथम चार सींग वाले मेंढ़े और पवित्र रिंगाल की छंतोली की पूजा अर्चना होती है। इसी गाँव के राजकुंवरो पर नन्दाजात के आयोजन की जिम्मेदारी है। राजगुरू नौटियाल धर्मिक अनुष्ठान में उनके सहायक हैं। श्री नन्दादेवी राजजात के आयोजन के लिये गठित होने वाली सर्वोच्च केन्द्रीय धर्मिक संस्था श्री नन्दादेवी राजजात समिति के अध्यक्ष पद पर कांसुवा के ही राजवंशी कुंवर परिवार से होते हैं। परम्परानुसार महामन्त्री का पद नौटियालों के मूल गाँव नौटी के नौटियाल परिवार के योग्य व्यक्ति को दिया जाता है।

लेख साभार : श्री नन्दकिशोर हटवाल



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