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नन्दा देवी राजजात के पड़ाव - प्रथम पड़ाव - ईड़ाबधाणी

Vinay Kumar DograAugust 21, 2014 | पर्व तथा परम्परा

नन्दा देवी राजजात के पड़ाव - प्रथम पड़ाव - ईड़ाबधाणी
आज १८ अगस्त २०१४ को नन्दादेवी राजजात का शुभारंभ होने जा रहा है। परंपरानुसार नौटी से प्रथम दिन राजजात ईड़ाबधाणी गांव को निकलती है। यह इस यात्रा का पहला पड़ाव है। इस दिन नंदादेवी की यात्रा का रात्रिविश्राम ईड़ाबधाणी गांव में ही होता है। वस्तुतः यह पड़ाव यात्रामार्ग का पड़ाव नहीं है। इसे यात्रा से पहले देवी का अपने प्रियजन से मुलाकात कर विदाई लेने हेतु जाने के रूप में देखा जाता है। नौटी से ईड़ाबधाणी की यह यात्रा ल्वींज, सिलंगी, चैण्डली, हेलुरी से होते हुए ईड़ाबधाणी गाँव पहुँचती है।
कैलाश यात्रा पर जाने से पहले नंदा देवी ईड़ाबधाणी गांव में क्यों आती है? इस बारे में एक किंवदन्ती प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार नन्दादेवी अपने मायके हरिद्वार कनखल से अपने ससुराल कैलाश जा रही थी। वह कर्णप्रयाग पहुंची और कर्णकुण्ड में स्नान करने लगी। स्नान करते समय उसकी नजर ईड़ाबधाणी गाँव पर पड़ी। उसे यह गाँव बहुत अच्छा लगा और वह वहां पहुंच गई। ईड़ाबधाणी में जमन सिंह जदोड़ा नाम के व्यक्ति निवास करते थे। इन्हें इस गांव का आदि पुरुष माना जाता है। जमन जदोड़ा ने भगवती नन्दा का बड़ा आदर सत्कार किया। नंदादेवी खुश हुई और उसने जमन सिंह जदोड़ा से वरदान मांगने को कहा। जमन सिंह जदोड़ा ने भगवती से प्रार्थना की कि जब-जब तू कैलाश जायेगी मेरा आतिथ्य अवश्य स्वीकार करके जाना। इस पर नन्दादेवी ने कहा कि मेरे साथ बड़ी संख्या में मेरे मैती (मायके वाले) होंगे, तुम्हारे रहते तो ठीक है लेकिन कल तुम्हारी आने वाली पीढ़ी को यात्रियों की सेवा सुश्रूषा में परेशानी हो सकती है। लेकिन जमन सिंह जदोड़ा ने उत्तर दिया, ‘‘मैं वचन देता हूँ कि मेरे वंशज खुशी से तेरी पूजा करेंगे और तेरे मैतियों की आवाभगत करेंगे’’। नंदादेवी ने जमन सिंह जदोड़ा के आग्रह को स्वीकार कर लिया और कैलाश यात्रा पर निकलने से पहले ईड़ाबधनी गांव आने का वचन दिया। इसी वचन को निभाने के लिये नौटी से कैलाश की ओर प्रस्थान करने से पूर्व भगवती नंदा ईड़ाबधाणी हर राजजात में पूजा लेने आती है। सदियों से ईड़ाबधाणी में रह रहे जमन सिंह जदोड़ा के वंशज भगवती नन्दा को दिये गये वचन को निभा रहे हैं। ईड़ाबधाणी पहुँचने पर मन्दिर में जागरों में वर्णित विधि-विधान के अनुसार गाढ़े सफेद कपड़े का थान बिछावाकर भगवती नन्दादेवी और राजजात यात्रियों का स्वागत किया जाता है। यहाँ पर नन्दादेवी, नरसिंह, लाटू, पेरुल व चण्डिका के मन्दिर हैं। नौटियाल लोग यहाँ के पुजारी हैं। रातभर जागरण होता है। कर्णप्रयाग नजदीक होने के कारण देवी के दर्शन हेतु काफी भीड़ जुटती है। जागर लगते हैं तथा परम्परागत विधि-विधान से नंदादेवी की पूजा अर्चना होती है। 

लेख साभार : श्री नन्दकिशोर हटवाल



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